एक रुमाल और दो नोटों की विरासत
बात 2019 की है. मेरे विश्वविद्यालय के कुछ बच्चों का अंतिम वर्ष था. मुझे लगा विदाई के रुप में मैं उन्हें कुछ पैसे दूँ चिज्जी खाने के लिए, जैसे जब हम अपने मामा के घर जाते थे तो वहाँ हमें मामा देते थे. चूँकि विश्वविद्यालय में बच्चे इतने सारे थे कि सभी को ₹100-200 देना मुश्किल था. इसलिए उन्हें ₹20-20 दिए. कुछ बच्चे इस घटना से बहुत भावुक हो गए और उन्होंने उन नोटों पर मेरे हस्ताक्षर करवा लिए, और कहा कि वे कभी इन्हें ख़र्च नहीं करेंगे. उनमें से एक बच्ची हरअमृत कौर ने मुझे आज इन नोटों की फोटो भेजी, तो मधुर स्मृतियों की फुहार से मन खिल उठा.

एक ऐसी ही घटना मेरी माँ के जीवन में भी घटी थी. एक बार उनकी प्यारी मोहनी बहन जी ने उनके रुमाल पर उनके नाम का पहला अक्षर लिख दिया था, और माँ ने उस पर कढ़ाई कर ली थी. वह रुमाल 57 साल के बाद भी मेरी माँ के साथ है. यह वही मोहनी मैम हैं जिन्होंने मुझे पीएचडी करवाई थी. माँ को नवमीं और दसवीं में पढ़ाने के बाद मैडम का ट्रांसफर हो गया था. जिसके कारण माँ और मैम का संपर्क भौतिक रूप से मिट गया था, लेकिन फिर भी माँ के हृदय में मैम हमेशा ही बसी रहीं. जब से मैंने होश सँभाला तब से हमेशा अपनी माँ को उनकी बहन जी के बारे में बात करते सुना. और उन्हीं की प्रेम की शक्ति थी जिससे 30 वर्षों के अंतराल के बाद भी मुझे मैम तब मिलीं जब मैं पीएचडी के लिए किसी गाइड की खोज में संघर्षरत था.

ऐसी प्यारी कहानियाँ मेरे जीवन की असली विरासत हैं. अपने आप को भाग्यशाली समझता हूँ कि यह सब मेरे जीवन में असल में घटा है. ऐसा कुछ तो किताबों की कल्पना में भी ढूँढना मुश्किल है.

यह प्रेम की विरासत ही मेरी अमूल्य सम्पदा है.